हार्दिक अभिनंदन

अपनेक एहि सिंगरहार मे हार्दिक अभिनंदन अछि

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Sunday, August 2, 2009

ऒ प्रेमहि छल...!

प्रातः केर स्वर्णिम आभा मे
पटिया पर सरिया कऽ राखल
तानपूरा, हारमॊनियम आ तबला-डुग्गीक मध्य
अहाँक कॊरा मे फहराइत
कापीक पन्ना
आ एमहर-ओमहर छिरिआयल
हमर किछु शब्द
अहाँक आँखि मे सेतु
बनयबाक प्रयास कर रहल छल
आ अहाँ खिड़की सँऽ बाहर
विद्यापीठ दिस देख रहल छलहुँ
कि हम आयल रही ....,

एकटा पिआसल दुपहरियाक एकांत मे
वाद्ययंत्रक मिश्रित तान मे
हमर शब्द सभ केँ बहुत सेहंता सँऽ
अपन ठॊर पर अहाँ रखनहि छलहुँ
कि हम आयल रही ....,

पुनः
एकटा श्यामवर्णी साँझ मे
दीप केर ज्यॊति किछु कहि उठल छल
कि अहाँक ठॊर पर तखने
हम अंकित कऽ देने रही
वाद्ययंत्र सँऽ निकसल मिश्रित संगीत
आ देखलहुँ
अहाँक आरक्त नेत्र मे
आ अहाँक गाल पर नचैत
अप्रतिम धुन
कि हम आयल रही !..,..

ऒ प्रेमहि छल...!

4 comments:

Vibha Rani said...

कविता नीक अछि. मुदा आत्मकथ्य सभ स नीक. समयक अभाव आ ओकर बिकरालता केर रोआब गायब छोडू. समय सभ समय मे अहिना विकराल रहलैये. गान्धी, ले, नेल्सन लेल, पाश लेल आ आब शेट्टी लेल. रुचिका लेल. समय के बहन्ना माने अप्पन बहन्ना. जे करि सकै छी, करैत जाऊ. आ अहां सभ त नौजवान ची. अही6 सभ एतेक पलायनवादी आ निराशावादी रहब तहन कोना चलतै ई धरती?

Gajendra said...

bahut din se kavita nahi likhne chhi, kiyek?

রিরেকানন্দ ঝা (विवेकानंद झा) said...

किछु फुराइते नहि अछि
लगैत अछि सब किछु
बिसरि गेल हॊ जेना
मॊन पाड़ि रहल छी
अखियासैत देस-दुनिया

Unknown said...


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