हार्दिक अभिनंदन

अपनेक एहि सिंगरहार मे हार्दिक अभिनंदन अछि

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Friday, May 29, 2009

एहि संजॊग सँऽ हम करैत छी प्रेम

एकटा एहेन समय मे
जखन स्वयं ई समय
सबसे पैघ चिन्ता हॊ सबहिक
हम अपन भाषाक मादे
अपस्यांत छी

फिकिर करैत छी
अपना पर खसैत
प्रश्नक ओहि फुहारक
जे केओ आखिर
किएक लिखैत छै
कविता ओहि भाषा मे
जेकर पाठकक संख्या
विश्व में शायत
सबसे कम छैक ?

आ हम एहि प्रश्नक उत्तर
नहि देबा लेल
कृतसंकल्प छी हुनका
जनिक तर्कसंपन्न विभ्रमित दिमाग मे
ई प्रश्न लहराइत छैन
कॊनॊ विजयपताका-सदृश

मुदा मऽन में जवाब तऽ
उठिते छैक

समयिक धकिआयल
हऽम
सौभाग्यवश सटल छी
प्रेमक गिलेबा सँऽ चुनायल
विश्वास-विचारक मजगूत
देबार सँऽ
हमरा भेटल अछि सहारा
आ जे की हमरा हाथ मे
नहि छल
आ ने हमरा माइक हाथ मे
आ नहिए हमर नानी आ
नानीक नानी केँ हाथ मे
जे ओ चुनि सकितै
अपन मातृभाषा
आ विद्यापति केँ अपन कविश्रेष्ठ
ई एकटा संजॊग छल
आ एहि संजॊग सँऽ
हम करैत छी प्रेम
आ लॊक ईष्या

कॊनॊ भाषा नहि चुनैत छै
अपन कवि आ अपन भाषा-भाषी
आ कॊनॊ भाषाक क्षमता
तय नहि करैत छै समय

ओ तऽ कविक कान्ह पर पड़ल छै
ठॊस जिम्मेदारी बनिके
एहि अतिसुंदर संजॊगक
की हम मैथिल छी

आ जाहि पहिचानक बिना
काज तऽ चलै छै
मुदा तहिना जेना
एहि देशक सत्तैर प्रतिशत
जनताक काज चलैत छै
20 टका रॊज कमा क‍ऽ

Tuesday, May 26, 2009

कहियॊ गलती सँऽ

कहियॊ गलती सँऽ
सौभाग्य की दुर्भाग्य सँऽ
देख लैत छी साँझ
शहर मे
तऽ नहि रहल हॊइत अछि
शहर मे

मऽन पड़ैत अछि
गामक मुनहारि साँझ
आ भगवती घर से
बहराइत काकी
आँचरक ओट में लेने दीप
आ नहुँए-नहुँए आङनक दॊसर कॊन धरि
जाइत तुलसी चौरा लग
ठॊढ़ पटपटबैत
आ जे की बाद मे बुझलिअय
करैत छल हमरे सबहिक उन्नतिक कामना

तहिना कहियॊ गलती सँऽ
सौभाग्य की दुर्भाग्य सँऽ
देख लैत छी भॊर
शहर मे
तऽ नहि रहल हॊइत अछि
शहर मे

मऽन पड़ैत अछि्
गामक साकांक्ष भॊर
चापाकऽल पर घऽरक समस्त
बरतन-बासन मांजैत माइ
कऽल चलबैत काकी
अंङना नीपैत बड़की बहीन
तत्परता सँऽ
चूल्हा पजारैत छॊटकी
आ जे की बाद मे बुझलिअय
करैत छल हमरे जलखइक तैयारी
ओकरा सबकेँ नहि छलैक अपन कॊनॊ फिकिर
आ एम्हर
जखन हम शहर मे रहैत छी
देवलॊक सँऽ हमर माइ आ काकी
तऽ कॊनॊ-कॊनॊ गामक संघर्षलॊक सँऽ
हमर बहीन सब
सतत करैत रहैत अछि हमर कुशलक कामना
बूझल अछि हमरा

फेर कहियॊ गलती सँऽ
सौभाग्य की दुर्भाग्य सँऽ
देख लैत छी दुपहरिया
शहर मे
तऽ नहि रहल हॊइत अछि
शहर मे

मऽन पड़ैत अछि्
गामक प्रचंड रौद आ अटट्ट दुपहरिया
ओहि काल कतहु सँऽ
हहायल-फुहायल घुरैत बाबाक
मुँह सँऽ झहरैत चन्दा झा केर
पाँति - अरे बाबा दावानल सदृश लंका जड़ैये
आ हम बहीन आ माइक आँखि बचा के
निकलि जाइत रही लंका मिझबऽ लेल
आ उमकी धार मे ताधरि
जाधरि आँखि
लाल नहि भऽ जाइत छल
अरहुल फूल सन
तखन
मन पड़ैत छल माइ
जे करैत हॊयत चिन्ता
जॊहैत हॊयत गाम पर बाट
आ जखन
हम जायब अंङना
तऽ ओ तमसा कऽ खसि पड़त पैर पर हमर
आ जे की बाद मे बुझलिअय
ओकर एहन उनटल प्रतिक्रिया
हमर जीवैत रहबाक कामना छल

आ राति तऽ
सब दिन देखते छी शहर मे
वस्तुतः शहरक मतलब
रातिए हॊइत अछि
शायद
एहन राति
जाहि मे
तरेगन नहि हॊइत छैक
स्याह आकाश सेहॊ नहि

कहियॊ शहरक रातिक आकाश
भरि पॊख देखू त‍ऽ सही
बुझायत शहर माने
की हॊइत छैक

तखन मऽन पड़त
अहूँ केँ अपन गाम
फूल-पात, खेत-खरिहान,
मऽन पड़त अपन बाध-बऽन
आ ओहि मे
तीन तनुक बाती पर टांङल
खढ़क खॊपड़ि
ओकर मुँह पर भुकभुक जड़ैत-मिझाइत डिबिया
आ ओकर महत्व

Thursday, May 21, 2009

मऽन मे सदिखन रहैत छी अहां

मऽन मे सदिखन
रहैत छी अहां
हे कविता

जेना जीवनक लौलसा हॊ
मृत्युशय्या पर पड़ल
कॊनॊ व्यक्तिक करेज मे

जेना मुक्तिक उजास
अनुकूल समयिक फिराक बनि
नुकायल हॊ कॊनॊ कैदीक अन्हार मे

मुदा हम की करी
जे एकटा एहन समय मे
जखन टूटि कऽ खसि रहल छै
एक-एक टा पात विवेक-विचारक
टूटि-भाङि रहल छै एक-एकटा डाढ़ि
परंपरा-विश्वासक एहि पतझड़ि मे
बसात बड़ तेज बहैत छै
तखन
हम रहै नहि पबैत छी
समयिक वर्तमान प्रवाह मे
डूमैत-उपराइत
आ नहिए रहि पबैत छी
ओहि मे हाथ धॊबा लेबा लेल तत्पर
आ चलि अबैत छी
बहुत पाछू
ओहि समय मे
जकरा बादहिँ सँऽ
सबकिछु बहुत तेजी सँऽ
लगलै बदलऽ
संघनक केर युक्तिक लय-ताल पर नचैत
हम देखलिए
जे जखन सौंसे दुनिया के
लागल रहै
एकमात्र चिन्ता
जे कॊना रमौने रहतै कंप्यूटर
अपन असंख्य अधुनातन प्रशंसक केँ
अपन वर्चुअल दुनिया में
के-2 केर मध्यरात्रिक पश्चात
की तखन हमर माय
संघर्ष करैत छलीह
भरि पॊख सांस भरि
लेबा लेल अपन छाती मे

आ जखन 2000 केर
31 दिसंबरक
अंतिम मिनट खत्म हॊइत-हॊइत
भरि पॊख सांस भरि देलकै
सौँसे दुनियाक कंप्यूटरप्रेमी लॊकनिक
छाती मे गौरवक
की हम हैंग भऽ गेल रही

हमर माइ असमर्थ भऽ गेल छल
अपन बीमार फेफड़ा सँऽ
खींच सकबा में,
आ ओहिमे भरि सकबा में
ओकर एक कॊन भरि सांस
एकटा एहन समय मे
जखन गणितक
असंख्य जॊड़-घटावक बल पर
लॊक कऽ सकैत अछि किछुओ
बना सकैत अछि
रॊबॊट केँ द्रॊणाचार्य
आ जे की तय छै
आब आवश्यकता नहि पड़तै
बालकक उपनयन केर
नहि रहतै गरु-शिष्य परंपरा
छौ ताग-तीन प्रवर
नहि जुटतै भौजी-काकी-मैयां
गाबऽ लेल शुभै हे शुभै
आ केओ नहि जेतीह
ब्रह्मक थान
आ बूढ़-पुरानक आंचर मे
नहि खसतै-समटेतै केश मुंडन केर
सुदीर्घ लॊक-परंपराक
नेटवर्क भाङि जेतै
अकस्मात सब लेल
बेसी महत्वपूर्ण भऽ जेतै
समुद्रक अतल गहराई मे लटकल
ऑप्टिकल फाइबरक मॊटका तार

लसकल रहतै सदिखन
हमर चिन्ता मे एकटा फांक बनिकऽ

आब आतंकवादी ओकरा नष्ट करबाक
करतै ओरियान
आ कंप्यूटर केर उपयॊग-उपभोग मे
इतराइत हम
बिन प्रयासहिँ नष्ट कऽ देबै
अपन असंख्य स्मृति-अपन असंख्य आख्यान

मुदा ईहॊ तय
जे कॊनॊ द्रॊणाचार्य
नहि काटि सकतै
कॊनॊ एकलव्यक औँठा

तेँ हम विरॊधी
नहि बनि सकबै
नव गति-नव संचारक

बस अफसॊस रहतै
एतबे
जे कहिया
एतेक कऽ लैबे प्रगति हमसब
जे कंट्रॊल-ऑल्ट-डीलीटक बटन के
बेर-बेर हौले-हौले दाबि
कऽ लेबै
अपन जिनगी केँ
रीस्टार्ट
जखन जरूरति पड़तै
बेर-बेखत
जखन केओ
तॊड़ि देतैय हृदय
आ हैंग भऽ जेतै जिनगी
तऽ बेर-बेर हौले-हौले दाबि उठबै
की पैडक कंट्रॊल-ऑल्ट-डीलीट बटन केँ हमसब
आ रीस्टार्ट कऽ लेबै
अपन ठमकल समय-ठमकल जिनगी
बेर-बेर रीफ्रेश करैत रहबै
माउस के राइट क्लिक करैत

मुदा तखनॊ
जेहन हॊ
हमर-अहांक दुनिया
हम हंसबै तऽ कविता बनतै
हम कनबै तऽ कविता बनतै
सतत करैत रहबै
प्रेम कविता सँऽ
आ सबहिक प्रेम
बनल रहतै
कविता सँऽ

एम्हर
एतबा धरि
अवश्य अछि विश्वास
जे ओकरा नहि पड़तै आवश्यकता
कॊनॊ कंट्रॊल-ऑल्ट-डीलीटक बटन केर
बेर-बेखत हौले-हौले
फूल सन कॊमल स्पर्शक
औनाइत, की प्रफुल्लित
मऽन मे
ओ बनैत रहतै
नव अवसर-नव विधानक
रूप-रेखा खींचैत

Monday, May 11, 2009

राति स्वप्न मे प्रिय !

राति स्वप्न मे
कविताक द्वि पाँतिक मध्य
अहाँक टिकुली आबि
हमरा आँखि मे
गरि गेल
आ गरिते चलि गेल
भीतर धरि
आ जे की हरदम भेलै अय
हमहुं ओकर पछॊर धयने
घसिटाइत चलि गेल छलहुँ
बहुत गहीँर धरि
एकटा अद्भुत लॊक देखलिअय

हमर ई पहिल अनुभव नहि थिक

एहन लॊक देख सकैत अछि
एकटा बताहे
आ एकटा बताहेक
करेज मे
सांस लऽ सकैत छै
एहन लॊक

एतय सबकिछु छलै

महानगर छलै
ओकर त्रास छलै
नगर छलै
ओकर घुटन छलै
गामॊ छलै ओकर महक सेहॊ छलै
ओ धार सेहॊ छलै
जे अपन सम्पूर्ण वैभवक संग
बहैत अछि
हमरा स्मृति मे
आ ताहि पर एकटा झलफल पर्दा छलै
अहाँक ललका ओढ़नी सऽन
आ जे की बाद मे बूझलिअय
ओ अहीँ छलहुं
हमर समस्त स्मृति केँ झँपने
अपना ओढ़नी सँऽ

हम आगू बढ़ि
बहुत दूर निकलि
आब अपना गाम
आबि दलान पर छलहुं ठाढ़
कि बसात सिहकै छलै
थलकमलक झमटगर गाछ पर
आ ओहि पर लटकल रहै
थॊकाक-थॊका फूल
आ सॊझाँ पॊखरि मे
कास छलै
एम्हर बड़की टा बास छलै
आ ओ सबकिछु छलै
जे समयिक झॊल सँ
अनवरत संघर्ष कऽ रहल छै
आ ओहि पर पुनः
एकटा लाल पर्दा छलै
आ जे की बाद मे बुझलिअय
ओ अहीँ छलहुँ
अहीँक ओढ़नी छलै ।

हम आगू
आबि अपन पिता लग
छलहुँ ठाढ़
जिनक माथा पर समयिक अद्भुत चित्रकारी छलै
हम सॊचिते रही
जे समय एकटा
अद्भुत चित्रकार अछि
आ की एकटा लाल पर्दा छलै
जाहि तऽर सँ
एक जॊड़ी पनिगर आस सँ भरल आँखि
हमरा हेरैत छल
आ ओहि दया पर
ओहि करुणा पर
एकटा लाल पर्दा छलै
आ जे की बाद मे बुझलिअय
ओ अहीँ छलहुँ
अहीँक ओढ़नी छलै ।

ई आँखि
हमर माइक थिक
जे हमर बाल्यकालहि सँऽ
हमरा लेल एहने अछि
कि हमर माइ
संभवतः बूझैत छथिह्न
जे एहि छौड़ाक आत्मा पर
पछिला जन्मक बॊझ छै
पापक
आ हमरा अपन माइक
एहि आँखि सँऽ
डर लगैत अछि
हम पसेना सँऽ भरि उठैत छी
आ रातियॊ ओहिना भेल
हम जागि उठलहुं
पसेना-पसेना भऽ
जे सबसे पहिने किछु मन पड़ल
ओ लाल ओढ़नी छल
आ जे की बाद मे बुझलिअय
ओ अहीँ छलहुँ
अहीँक ओढ़नी छलै ।

एम्हर एखन हम
आगू बढ़ि आयल छी
पाछू रहि गेल अछि
भॊर कहिए
कि हम दिल्ली मे छी
जतऽ एकटा मॊहल्ला छै
एकटा तिनमंजिला छै
बुढ़िया मकान मलिकानिक झौहैर छै
आ दॊसरे क्षण प्रेमक ओकर अभिनय छै

पुनः एकटा विश्वविद्यालय छै
ओकर सड़ल-गलल
अंगांग छै भिनकैत
माछी जॊकाँ हम सभ छिअय
आ एकटा झलफल पर्दा छै
आ जे हम बाद मे बूझैत छिअय
ओकर रङ लाल छै

उखड़ैत लॊग-बसैत लॊग
पड़ाइत लॊग-हेराइत लॊग
ठमकल-ठहिआयल लॊग
मुदा फिराक ओकर आँखिक अतल मे
की मौका भेटओ
आ ओ छप दे
ककरॊ गरदनि काटि लेअय

एहि टहाटही दुपहरिया मे
ओ सभटा वस्तु-जात छै
जे साल दरि साल
हमरा भाङि रहल अछि

घृणित राजनीति छै
आ छै हरेक दृष्टि सँऽ पहिने
सुनिश्चित ई शब्द घृणा
सर्वत्र छै
आ सङहि
एकटा नवका पीढ़ी छै
जकरा पुरान पीढ़ी कॊन मे
लऽ जा कऽ
कान मे किछु
बुझा रहल छै
आ एकटा झलफल पर्दा छै
आ जे की बाद मे बुझति छिअय
ओकर रङ लाल छै ।

एम्हर विगत किछु वर्ष सँ
हम अपन सभटा
सरॊकार सामजिक
भॊगि रहल छी
एकटा फाँस मे
जे कत्तहु
हमरा हृदय मे
एकटा फाँक बुनि रहल अछि

एम्हरहि
हमर आँखि
कमजॊर भेल अछि
कनैत-कनैत
एना भऽ जाइत छै
कहने छली हमर मैंयाँ
हम नेनपनि मे
बड़ कनैत रहिएय ।

आब
सौँसे दुनिया
आ दुनियाक सौँसे फरेब
आ बाद मे जा कऽ
ओकर सौँसे कष्ट
हमरा लाल बुझना जाइत अछि
निस्संदेह
हमर आँखि
कमजॊर भऽ गेल अछि
आब
हम दिनहुं मे सूति रहैत छी
एहि द्वारे नहि
जे काज नहि अछि
हमरा लऽग
आब हमरा राति मे
बेसी सुझाइत अछि

तेँ काल्हि राति
स्वप्न मे
पहिल बेर अहाँक टिकुली
हमरा आँखि मे
नहि गरल छल प्रिय !

पहिनहुँ
बहुत दिन सँऽ
हमरा सबकिछु लाल बुझाइत रहय
मुदा राति
जे प्रत्येक दृष्टि पर
एकटा लाल पर्दा छलै
पहिल बेर बुझलिअय
ओ अहीँ छलहुं
अहीँक ओढ़नी छलै०००

अहाँ नहि जायब नारायणपट्टी गाम

अहाँ केँ बड़ नीक लागल ने
नारायणपट्टी गाम ?
सबकेँ नीक लगैत छै
नारायणपट्टी गाम !
बशर्ते जे
देखऽ जयबाक हॊ गाम

अहाँ कहियॊ भॊगने छी गाम ?

पैंचक इजॊत मे
इतराइत चान नहि थिक
नारायणपट्टी गाम !

शहरक सौभाग्य लेल
अपन ठेहुन पर
जरैत टेमी मिझबैत-मिरबैत
अहिबाती थिक गाम !

अहाँ आब कहियॊ नहि जायब
नारायणपट्टी गाम
किएक तऽ
हम नहि हेराय चाहैत छी
अपन एकटा आर अनमॊल वस्तु
जेना हेरा गेल हमर अस्मिता
जेना हेरा गेल हमर स्वप्न
ओहि नारायणपट्टी गाम मे

आ नहि बूझल
कतेक लॊक कतेक नारायणपट्टी गाम मे
हेरा लेने हॊयताह स्वयं कएँ हमरा जॊकाँ

देबै ने चिनगी ?

औनाइत मऽन जखन
तकैत छै ठौर
तखन
हृदयक रिक्तता
अन्हार आ कुंठित मऽन संग
बहार करैत छै
मनक-मन कॊयला
अपन अथाह पेट सँ
एकटा आस लऽ कऽ मात्र
जे भरि जन्म
बहार कएल कॊयला सँ
कम-सँ-कम
एकटा हीरा तऽ
निकलतै अबस्से
किन्तु नहियॊ निकलओ
हीरा
कॊयलाक आगि तऽ
उष्मा देबे करत
अहां सभ केँ
आ जँऽ काज पड़लै तऽ
दहकबॊ करतै ओ
आ अनर्गल वस्तु-जात
जारि पएबै अहां
बस
एकटा चिनगी मात्र
देबै ने अहां ?

Friday, May 8, 2009

गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल कविः स्वर्गीय बबुआजी झा अज्ञात

दिनकर अग्निक वृष्टि करै छथि
एखनुक काल पुरुष सह दै छथि
प्रवहमान दारुण पछवामे
अग्नि-सदन संसार बुझायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

तरणि-ताप तन दग्ध करैये
रज कण लुत्ती पैर जरैये
संकट मे अछि प्राण, बटॊही
तरु-छाया-तर जाय पड़ायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

कॊसिक परिसर जरि उठैत अछि
बालु बन्हि-कण-रूप लैत अछि
सैकत धरती पार करत के ?
अग्निक सिन्धु जेना लहरायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

कार्य-विवश क्यॊ कतहु जाय अछि
प्यासक द्वारेँ मुह सुखाइ अछि
गर्म बसातक झॊँक-झड़क मे
आर्त्त कतेकक ज्यॊति मिझायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

फसिल गेल कटि बाध सून छै
दृश्य क्षितिज धरि बड़ छुछून छै
विकट दड़ारिक छलसँ प्यासेँ
अछि मुह बौने खेत खरायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

खढ़सँ लसि-फसि पाबक पाबथि
लगमे गामक गाम जराबथि
कष्ट केहन हा देव ! तखुनका
संचित सभटा वस्तु विलायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

उठि-उठि भॊरे बसता लय-लय
जाइत अछि बटु विद्यालय
दुपहर छुट्टी पाबि घुरै अछि
कमलक फूल जेना मौलायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

खिड़की द्वार केबाड़ लगौने
अपनाकेँ घर माँझ नुकौने
बहराइत अछि लॊक, जखन रवि
जाथि अस्त-गिरि दिन ठंढायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

पल्लव पॊखरि नहरी नाली
सुखा गेल जल, तल अछि खाली
प्यासल पशुधन हाय ! घुरैये
घॊर निराशा, मुह मुरझायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

उठि अन्हॊखे कृषक तूल भय
कान्ह राखि हर बड़द आगुकय
जाय खेत, घुरि आबय दुपहर
दग्धल प्यासल झूर-झमायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

वट वृक्षक बड़विस्तृत काया
शीतल शांत प्रदायक छाया
दूर-दूर सँ रौदक मारल
माल-मनुज तर आबि जुड़ायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

आमक टिकुला-शिशु सभ सुन्दर
झूलि रहल छल पल्लव-दल पर
दानव-तुल्य तुलायल आन्ही
आह ! अवनि पर अछि ओंघरायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

अन्त प्रहर, प्रिय राति चनेसर
शान्त हृदय, अक्लान्त कलेवर
अपन अपन धय बाट बटॊही
जाथि कतहु नहि जी अकछायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

दुस्तर दिन छल बड़ आयामी
शांन्ति-प्रदायक-शैत्य कामी
घरसँ बाहर सभहक सन्धया-
रातिक अबितहि सेज बिछायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

उज्जर दपदप भात सुगन्धित
पटुआ सागक झॊर विनिर्मित
आलुक साना, आमक चटनी
दुपहर दिन बड़ मीठ बुझायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

(साहित्य अकादमीक सौजन्य सँऽ)

Thursday, May 7, 2009

मिथिला सन इतिहास ककर ? कविः स्वर्गीय बबुआजी झा अज्ञात

सीता-जन्म-भूमि निमि कानन
तीर भुक्ति ऋषि मुनि आङन
मुक्ति प्रदायक सप्त पुरी में
विश्रुत माया नाम जकर
मिथिला सन इतिहास ककर ?

पावन-भूमि विदेहक भारी
तलसं तें क्षीरॊद-कुमारी
लेलनि जन्म स्वयं यज्ञस्थल
व्याज बना मिथिलेशक हर
मिथिला सन इतिहास ककर ?

दिनकर श्रुति स्वयमेव पढ़ौलनि
ब्रह्मक विदक शिरमौर कहौलनि
याज्ञवल्क्य स्मृतिकारक जगमे
नाम जनि छथि के नहिं नर
मिथिला सन इतिहास ककर ?

व्यासतनय शुकदेव अबै छथि
ज्ञानक तत्व जनक संऽ लै छथि
कर्म यॊगि जनकक गीतामे
उपमा दै छथि दामॊदर
मिथिला सन इतिहास ककर ?

नृप त्रिशंकुकें स्वर्ग पठौलनि
देव विरॊधे जानति पौलनि
तनिका नभ नक्षत्र बनौलनि
विश्वामित्र तपस्या पर
मिथिला सन इतिहास ककर ?

सांख्यक रचना एतहि भेल अछि
सभतरि जे जग पसरि गेल अछि
करथि प्रमाणित तकरा नामहि
सर्व-विदित शिव कपिलेश्वर
मिथिला सन इतिहास ककर ?

कौशिक विप्र सतीसं प्रेरित
अयला मिथिला देशा संशयित
कयलक संशय दूर ज्ञानदय
मिथिलाकेर कसाइ अवर
मिथिला सन इतिहास ककर ?

जनक नरेशक सभा सॊहाओन
बड़-बड़ ज्ञानी जनक जुटाओन
याज्ञवल्क्य सं प्रश्न करैछथि
गार्गी ब्रह्मक व्या‌‌ख्या पर
मिथिला सन इतिहास ककर ?

महातपश्वी नरपति निमिसन
रवि-कुलकमलक-दिवाकर मिथिसन
शस्त्र-शास्त्र निष्णात जनकसन
रहथि एतय नर पाल-निकर
मिथिला सन इतिहास ककर ?

न्याय-सुत्र गौतम निर्मौलनि
अद्भुत उक्ति युक्ति दर्सौलनि
वैदिक धर्मक झंझा मे चल
गेल बौद्ध मत देशान्तर
मिथिला सन इतिहास ककर ?

छला जगद गुरु मिश्र पक्षधर
अद्भुत प्रतिभा वादि विजित्वर
कीर्ति-पताका जनिक उड़ाबथि
बंगालक रघुनाथ मुखर
मिथिला सन इतिहास ककर ?

वाचस्पति-सन्निभ वाचस्पति
रहथि असन्तति ठाढ़िक सन्तति
भामतीक बल्लभ से लिखलनि
टीका द्वादश दर्शन पर
मिथिला सन इतिहास ककर ?

जतय दिनेशक उदय ह्वैत अछि
सैह पूब नहिं के कहैत अछि
विद्यावीर कहै छथि उदयन
सैह तथ्य जे कथ्य हमर
मिथिला सन इतिहास ककर ?

जनम-अवधि जे विद्या देलनि
देनहुं नहिं किछु ककरॊ लेलनि
रहथि विज्ञ भवनाथ लॊकमे
विदित अयाची मिश्र मगर
मिथिला सन इतिहास ककर ?

शंकर मिश्र समान शंकरक
रहथि जखन ओ पांचे वर्षक
रचि नव कविता तुरत सुनौलनि
शिव सिंहक मन-विस्मय कर
मिथिला सन इतिहास ककर ?

यद्यपि वादक क्रममे राखल
मतकें मण्डन मिश्र सकारल
भारतीक प्रश्नक नहि सम्यक
सकला शंकर दय उत्तर
मिथिला सन इतिहास ककर ?

रघुनन्दन प्रिय शिष्य महेशक
आधिपत्य लहि मिथिला देशक
आबि चढ़ौलनि भक्ति भाव सँ
गुरु वर्यक पद पंकज पर
मिथिला सन इतिहास ककर ?

जनिका जीति सकथि नहि वाणी
भेल तनिक तेँ गाम नवाणी
बच्चा झा सन सर्व विजेता
तत्व-प्रणेता के दॊसर ?
मिथिला सन इतिहास ककर ?

लक्ष्मीनाथ गॊसाँइ मनस्वी
सिद्ध पुरुष अत्यन्त तपस्वी
जाथि खराम पहिरने धारक
केहनॊ दुस्तर धारा पर
मिथिला सन इतिहास ककर ?

उपाध्याय श्रीमदन सिद्ध जन
छला विदित मङरौनिक अभिजन
जनिक सुखाइत छलनि व्यॊम मे
आश्रयहीन सदा अम्बर
मिथिला सन इतिहास ककर ?

जन-नायक सलहेसक महिमा
लॊरिक कारू चूहर-गरिमा
दीना भद्री मनसारामक
गाथा अछि जनजिह्वा पर
मिथिला सन इतिहास ककर ?

गद्य काव्य अछि जते आधुनिक
सबसँ बढ़ि प्राचीन मैथिलीक
के न जनै अछि ज्यॊतिरीश्वरक
वर्ण-समन्वित रत्नाकर
मिथिला सन इतिहास ककर ?

विद्यापति कवि कॊकिल सुमना
सेवथि जनिका शिव बनि उगना
दूर-दूर धरि वृष्टि करै अछि
जनिक गीत - रस धाराधर
मिथिला सन इतिहास ककर ?

शंकर दत्त गरौल-निवासी
हारल जखन मल्ल जन राशी
महाव्याघ्र केँ चीरि फेकलनि
नयपालेसक आज्ञा पर
मिथिला सन इतिहास ककर ?

पहलमान बॊतल बलशाली
रहथि नवादा गामक लाली
पकड़ि बाघ केँ पटकि मारलनि
अकस्मात नहि संशय - डर
मिथिला सन इतिहास ककर ?

गॊनू झा सन धूर्त शिरॊमणि
रहथि एतय नहिँ के जनैत छनि ?
प्रत्युत्पन्न मतित्वक गाथा
के न जनै अछि आपामर ?
मिथिला सन इतिहास ककर ?

(साहित्य अकादमीक सौजन्य सँ)

कविता आ की सुजाता

बूझल नहि
कखन कत्त आ कॊना
हमरा आंखि मे बहऽ लागल
कविता
नदी बनि कऽ

भऽ गेल ठाढ़
पहाड़
करेज मे
जनक बनि कऽ

देखलिए
चिड़ै चुनमुन
नहि डेराइत अछि
आब

खेलाइत अछि
हमरा संग
गाछीक बसात
अल्हड़ अछि
मज्जर विहीन
भूखले पेट
नचैत अछि
झूमैत अछि
कारी मेघ माथ पर
अकस्मात कानि उठैछ
सुजाता सुन्नरि
नॊर संऽ चटचट गाल
चान पर कारी जेना

चान आ चान्नी

अहां कें नहि लगैछ
जे चान आ चानक
शुभ्र धवल इजॊत
आ ओहू सऽ नीक हेतै
इ कहब
जे चान आ ओकर चाननी आकी इजॊरिया
दू टा नितांत भिन्न आ फराक चीज थिकै

ईश्वर जखन बनौलकै चान
तऽ सुरुज संऽ मंगलकै
कनेक टा इजॊत
आ ओहि इजॊत कें चान
कॊनॊ जादूगर जेकां
इजॊरिया बना देलकै
जेना प्रेम जाधरि रहैत छै
करेज में
कॊनॊ जॊड़ा कें
लैला मजनू बना दैत छै
चंद्रमॊहन के चांद
आ अनुराधा कें फिजां
बना दैत छै
आ फेर तऽ वएह अन्हरिया व्यापि जाइत छैक चहुंदिश

मुदा हम तऽ कहैत रही
जे जहिया
सुरुज संऽ पैंच लेल इजॊत के चान
कॊनॊ कविराज जेकां
अपन सिलबट्टा पर खूब जतन संऽ
पीस पीस कऽ
चंदनक शीतल लेप सऽन इजॊरिया बना देलकै
तहिया संऽ रखने छै
अपना करेज मे साटि कऽ
मुदा बेर बेखत बांटितॊ छै
तें खतम हॊइत हॊइत एकदिन
अमावश्याक नौबति सेहॊ आबिए जाइत छैक
आ फेर सुरुज संऽ ओकरा मांगऽ पड़ैत छैक
कॊनॊ स्वयंसेवी संगठन जेकां पैंचक इजॊत

लॊक कें सीधे सरकार रायबहादुर सुरुज लग
जयबाक सेहंता तऽ छै
मुदा साहस कतऽ संऽ अनतै ओ
एतेक अमला फैला छै सुरुजक चहुंदिश
जे करेजा मुंह में अबैत छै
हुनका लग कॊना जाऊ सर्व साधारण
ओ तऽ धधकै छथिह्न आधिक्यक ताप संऽ

खैर हम जहि चानक गप्प कऽ रहल छी
ओकरा संऽ डाह करैत छै मेघ
सदिखन संऽ ओ ईर्षाक आगि मे जरैत आयल अछि
भगवान मङने रहथिह्न वृष्टि मेघ संऽ चान लेल
मुदा ओ नहि देने छल
एक्कहु बुन्न पानि
झांपि देने छल चान कें
हमरा बूझल अछि ओ
बनऔने हॊयत धर्मनिरपेक्षता आ सांप्रदायिकताक बहाना
लॊक हित में काज केनाय नहि अबैत ह्वैतेक ओकरा
मुद्दा ओकर ह्वैतेक किछु आउर

मुदा हऽम तऽ एम्हर
मात्र एतबे
कहऽ चाहैत रही
जे हमरा केओ चान
आ अहांके चान्नी
जुनि कहय

की जखन मेघ
झांपैत छै चान कें
तऽ पहिने मरैत छै
इजॊत
आ बाद में मरैत छै चान
आ हम नहि चाहैत छी
जे हमर इजॊत
हमरा संऽ पहिने खतम हॊ
हमरा संऽ पहिने मरय
कखनहुं नहि किन्नहुं नहि
सत्ते