हार्दिक अभिनंदन

अपनेक एहि सिंगरहार मे हार्दिक अभिनंदन अछि

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Thursday, May 7, 2009

कविता आ की सुजाता

बूझल नहि
कखन कत्त आ कॊना
हमरा आंखि मे बहऽ लागल
कविता
नदी बनि कऽ

भऽ गेल ठाढ़
पहाड़
करेज मे
जनक बनि कऽ

देखलिए
चिड़ै चुनमुन
नहि डेराइत अछि
आब

खेलाइत अछि
हमरा संग
गाछीक बसात
अल्हड़ अछि
मज्जर विहीन
भूखले पेट
नचैत अछि
झूमैत अछि
कारी मेघ माथ पर
अकस्मात कानि उठैछ
सुजाता सुन्नरि
नॊर संऽ चटचट गाल
चान पर कारी जेना

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