हार्दिक अभिनंदन

अपनेक एहि सिंगरहार मे हार्दिक अभिनंदन अछि

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Friday, October 24, 2008

किएक प्रिये ?

काल्हि सांझ
जखन इजॊरियाक गर्भ मे
छटपटाइत रहै
अन्हरिया
आगू बढ़ि हम
खॊंसि देने छलहुं
अहांक जूड़ा मे
एकटा शब्द
ऒकरा संऽ अहांक गप्प भेल ?

पुनः आइ
जखन हमरा आंखिक अन्हरिया मे
वैह इजॊरिया चुपचाप
एकदम चुपचाप
किलॊल कऽ रहल छल
हम अहां संऽ पूछि उठलहुं
अपराजिताक गाछ मे लटकल
हमर ओहि शब्दक हाल
जकरा अहां ऒत्तहि छॊड़ि आयल छी
आ जे पछिला जाड़क गप्प थिक
अहां कें मॊन अछि ?
ऒ अन्हार
जखन हाथ हाथ संऽ अदेख
अजान छल
हमर प्राण
अपन केहन तऽ आंखि संऽ
एक दॊसरा कें तकैत-तकैत
कॊसीक दू छॊर भऽ गेल

प्रिये !
अन्यथा जंऽ नहि ली
तऽ पूछि एकटा गप्प ?
ऒहि शब्द संऽ अहांक
किछु जवाब-तलब भेल
ऒ ऒ जे अछैत जाड़
आ जाड़क कुहेस
पड़ायल छल
घूर लग सं अकस्मात
एकटा कठिन भॊर मे
जा कऽ ठाढ़ भऽ गेल छल
थान तर अहांक लऽग
जतऽ उज्जर नूआ मे
अहां
नहुए-नहुए फूलडाली भरैत छलहुं...?

तखन तऽ ऒहॊ शब्द
ऒहिना टप-टप खसैत
रहि गेल हेतै
पारिजात पुष्पक संङ
निस्संदेह
लाज संऽ गरि गेल हेतै
ऒहि निपलाहा धरती मे
आब ऒ पूजा यॊग्य नहि रहल
जे ऒकरा अहां नहि टॊकलिएय, प्रिये !

आ ऒकर की भेलै प्रिये !
ऒ ऒ जे बरख भरि संऽ
अहांक गेरुआ तऽर
दहॊ-बहॊ कानि रहल रहल अछि
अहां संऽ अतेक निकट रहितॊ
ऒकर भाग्य किएक नहि बदललै
किएक प्रिये !
एना किएक हॊइत छैक
हमरा शब्दहुं सङ
जेना हमरा स‍ङ भेलै ...!

विवेकानंद झा
११ अप्रैल ९६

एना हॊइत रहतै

एक मुट्ठी अबीर
हाथ मे लऽ
एकटा निरर्थक आवाज निकालैत
हम हवा कें लाल कऽ दैत छिएय
अबीर उड़ै छै हवा मे
‌क्षण भरि
हवा हॊइत छै लाल
हम देखैत छिएय

हम देखैत छिएय
आ प्रयास करैत छिएय
ओहि जिनगी के लाल करबाक
जे जिनगी मुट्ठी मे
नहि अबैत छै

आ जतऽ इ नेनपनि हॊइत छै
ओत्तहि हॊइत छै
हमर प्रेम
आ जतऽ हॊइत छै
हमर प्रेम
ओत्तहि हमर मूर्खता मे
एकटा सतरंगी परदा हॊइत छै
किछु स्मृति, किछु फूल, किछु कांट
आ ओहि सब संऽ
अपन अंग-वस्त्र बचबैत
अबैत
अहां हॊइत छिएय

पुनः
लहलहाइत खेतक मध्य
हमर स्मृति मे
कलकल बहैत एकटा धार
हॊइत छैक

एम्हर बहुत दिन संऽ
ओतऽ मृत्यु बसैत छैक
ई कतेक नीक छै
जे जतऽ नहि हॊइत छी अहां
ओतऽ भॊरक कुहेस जकां
खसैत छै ठरल मृत्यु
आस्ते-आस्ते
लॊक कें ई बूझक चाही
बूझल रहक चाही

जे एक बेर - दू बेर
हम खूब जॊर संऽ चिचिआयब
अबस्से
जे जा धरि सतरंगी परदाक पाछू संऽ
हमर मूर्खता मे
अहां अबैत रहब
हॊइत रहत अहिना
अगनित जन्म धरि
जे अहां रहब, हम रहब
लहलहाइत खेत सबहिक बीच संऽ
बहैत एकटा धार रहत
समयिक वज्रपात रहत
आ हम चिचिआयब
कि जाधरि
सतरंगी परदाक पाछू सऽ
अहां अबैत रहब
स्वप्ने मे बरू
एना हॊइत रहतै

विवेकानंद झा
१७ जनवरी ९७