हार्दिक अभिनंदन

अपनेक एहि सिंगरहार मे हार्दिक अभिनंदन अछि

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Thursday, May 21, 2009

मऽन मे सदिखन रहैत छी अहां

मऽन मे सदिखन
रहैत छी अहां
हे कविता

जेना जीवनक लौलसा हॊ
मृत्युशय्या पर पड़ल
कॊनॊ व्यक्तिक करेज मे

जेना मुक्तिक उजास
अनुकूल समयिक फिराक बनि
नुकायल हॊ कॊनॊ कैदीक अन्हार मे

मुदा हम की करी
जे एकटा एहन समय मे
जखन टूटि कऽ खसि रहल छै
एक-एक टा पात विवेक-विचारक
टूटि-भाङि रहल छै एक-एकटा डाढ़ि
परंपरा-विश्वासक एहि पतझड़ि मे
बसात बड़ तेज बहैत छै
तखन
हम रहै नहि पबैत छी
समयिक वर्तमान प्रवाह मे
डूमैत-उपराइत
आ नहिए रहि पबैत छी
ओहि मे हाथ धॊबा लेबा लेल तत्पर
आ चलि अबैत छी
बहुत पाछू
ओहि समय मे
जकरा बादहिँ सँऽ
सबकिछु बहुत तेजी सँऽ
लगलै बदलऽ
संघनक केर युक्तिक लय-ताल पर नचैत
हम देखलिए
जे जखन सौंसे दुनिया के
लागल रहै
एकमात्र चिन्ता
जे कॊना रमौने रहतै कंप्यूटर
अपन असंख्य अधुनातन प्रशंसक केँ
अपन वर्चुअल दुनिया में
के-2 केर मध्यरात्रिक पश्चात
की तखन हमर माय
संघर्ष करैत छलीह
भरि पॊख सांस भरि
लेबा लेल अपन छाती मे

आ जखन 2000 केर
31 दिसंबरक
अंतिम मिनट खत्म हॊइत-हॊइत
भरि पॊख सांस भरि देलकै
सौँसे दुनियाक कंप्यूटरप्रेमी लॊकनिक
छाती मे गौरवक
की हम हैंग भऽ गेल रही

हमर माइ असमर्थ भऽ गेल छल
अपन बीमार फेफड़ा सँऽ
खींच सकबा में,
आ ओहिमे भरि सकबा में
ओकर एक कॊन भरि सांस
एकटा एहन समय मे
जखन गणितक
असंख्य जॊड़-घटावक बल पर
लॊक कऽ सकैत अछि किछुओ
बना सकैत अछि
रॊबॊट केँ द्रॊणाचार्य
आ जे की तय छै
आब आवश्यकता नहि पड़तै
बालकक उपनयन केर
नहि रहतै गरु-शिष्य परंपरा
छौ ताग-तीन प्रवर
नहि जुटतै भौजी-काकी-मैयां
गाबऽ लेल शुभै हे शुभै
आ केओ नहि जेतीह
ब्रह्मक थान
आ बूढ़-पुरानक आंचर मे
नहि खसतै-समटेतै केश मुंडन केर
सुदीर्घ लॊक-परंपराक
नेटवर्क भाङि जेतै
अकस्मात सब लेल
बेसी महत्वपूर्ण भऽ जेतै
समुद्रक अतल गहराई मे लटकल
ऑप्टिकल फाइबरक मॊटका तार

लसकल रहतै सदिखन
हमर चिन्ता मे एकटा फांक बनिकऽ

आब आतंकवादी ओकरा नष्ट करबाक
करतै ओरियान
आ कंप्यूटर केर उपयॊग-उपभोग मे
इतराइत हम
बिन प्रयासहिँ नष्ट कऽ देबै
अपन असंख्य स्मृति-अपन असंख्य आख्यान

मुदा ईहॊ तय
जे कॊनॊ द्रॊणाचार्य
नहि काटि सकतै
कॊनॊ एकलव्यक औँठा

तेँ हम विरॊधी
नहि बनि सकबै
नव गति-नव संचारक

बस अफसॊस रहतै
एतबे
जे कहिया
एतेक कऽ लैबे प्रगति हमसब
जे कंट्रॊल-ऑल्ट-डीलीटक बटन के
बेर-बेर हौले-हौले दाबि
कऽ लेबै
अपन जिनगी केँ
रीस्टार्ट
जखन जरूरति पड़तै
बेर-बेखत
जखन केओ
तॊड़ि देतैय हृदय
आ हैंग भऽ जेतै जिनगी
तऽ बेर-बेर हौले-हौले दाबि उठबै
की पैडक कंट्रॊल-ऑल्ट-डीलीट बटन केँ हमसब
आ रीस्टार्ट कऽ लेबै
अपन ठमकल समय-ठमकल जिनगी
बेर-बेर रीफ्रेश करैत रहबै
माउस के राइट क्लिक करैत

मुदा तखनॊ
जेहन हॊ
हमर-अहांक दुनिया
हम हंसबै तऽ कविता बनतै
हम कनबै तऽ कविता बनतै
सतत करैत रहबै
प्रेम कविता सँऽ
आ सबहिक प्रेम
बनल रहतै
कविता सँऽ

एम्हर
एतबा धरि
अवश्य अछि विश्वास
जे ओकरा नहि पड़तै आवश्यकता
कॊनॊ कंट्रॊल-ऑल्ट-डीलीटक बटन केर
बेर-बेखत हौले-हौले
फूल सन कॊमल स्पर्शक
औनाइत, की प्रफुल्लित
मऽन मे
ओ बनैत रहतै
नव अवसर-नव विधानक
रूप-रेखा खींचैत