हार्दिक अभिनंदन

अपनेक एहि सिंगरहार मे हार्दिक अभिनंदन अछि

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Sunday, August 2, 2009

ऒ प्रेमहि छल...!

प्रातः केर स्वर्णिम आभा मे
पटिया पर सरिया कऽ राखल
तानपूरा, हारमॊनियम आ तबला-डुग्गीक मध्य
अहाँक कॊरा मे फहराइत
कापीक पन्ना
आ एमहर-ओमहर छिरिआयल
हमर किछु शब्द
अहाँक आँखि मे सेतु
बनयबाक प्रयास कर रहल छल
आ अहाँ खिड़की सँऽ बाहर
विद्यापीठ दिस देख रहल छलहुँ
कि हम आयल रही ....,

एकटा पिआसल दुपहरियाक एकांत मे
वाद्ययंत्रक मिश्रित तान मे
हमर शब्द सभ केँ बहुत सेहंता सँऽ
अपन ठॊर पर अहाँ रखनहि छलहुँ
कि हम आयल रही ....,

पुनः
एकटा श्यामवर्णी साँझ मे
दीप केर ज्यॊति किछु कहि उठल छल
कि अहाँक ठॊर पर तखने
हम अंकित कऽ देने रही
वाद्ययंत्र सँऽ निकसल मिश्रित संगीत
आ देखलहुँ
अहाँक आरक्त नेत्र मे
आ अहाँक गाल पर नचैत
अप्रतिम धुन
कि हम आयल रही !..,..

ऒ प्रेमहि छल...!

हम जी रहल छी

धानक दूध भारी आ ठॊस ह्वैत रहलै
आ शीत संग हौले-हौले बहैत रहलै
समय आ व्याकुल मॊन
आ आँखिक सॊझाँ
रिक्त हॊइत रहलै खेत
आ भरैत रहलै खरिहान
गॊहूम सँऽ
आ पुनः जलमग्न हॊइत रहलै
अहाँक अत्यंत मनॊहरताक परिपार्श्व मे
ई आँखि
गेंदा, तीरा, सिंगरहार आ थलकमल
लुटाइत देखैत रहलै
खसैत रहलै कओखन अहाँक फूलडाली सँऽ तऽ
कओखन अहाँक आँचर सँऽ
हमर आँखि
छॊट-पैघ यात्रा करैत रहलै
अहाँक अत्यंत मद्धिम मनॊहरताक परिपार्श्व मे
अनुखन नव पाँखि लगा उड़ैत रहलै
ई आँखि
छाती मे नेने एकटा गाम, एकटा धार, एकटा माय
थान तर केर जाड़क भॊर
बदलल आकास मे
दृश्य बदलैत रहलै
मुदा अहाँक अत्यंत मद्धिम मनॊहरताक परिपार्श्व मे
लसैक कऽ ठमकल छै
छॊट-छॊट कालक एकटा
कॊंढफट्टू दृश्यालॊक....,
हम जी रहल छी...!?...

तॊरा मे हम

तॊँ कत्तऽ छैँ बहिन !
कत्त रहबेँ काल्हि साँझ
तखन जखन
सुरुज घर मे घुसि
भीतर सँऽ लगाबक ओरियान मे रहतै
अपन दरबज्जा ?
हम तॊरा छूबि कऽ
देखऽ चाहबौ जे कतेक रास बचल छी
एखनॊ हम तॊरा मे
जखन कनेके काल बाद
हॊमऽ वला हेतै राति घनघॊर !....

जतऽ रहैत छैक लौलसा ओकर

अहाँकेँ लगैत अछि
जखन
कि हम अंतः छी कत्तहु
तखन
हम रहैत छी
अहीँक आँचर तऽर
झलफलाइत दीप सन
जैरत आ आलॊकित हॊइत
स्नेहक आधिक्य आ
ढबकैत इच्छाक उछाह सँऽ

अहाँकेँ
बूझक चाही
जे लॊक सदिखन रहैत छै
ओत्तहि जतऽ
रहैत छैक लौलसा ओकर !

एकांत मे अहाँ

बेर बेर...
बेर बेर हमर चेतना मे अहाँ आबि जाइत छी
गीतक टेक जॊकाँ
मॊन रहैत छी
जीवित हमरा ठॊर पर...

अहाँ प्रायः हरेक बेर, हरेक समय
देखैत रहैत छी हमरा
ढरकल आँचर
की करी... की करी जे...
कौखन तानपूराक खुट्टी मे
लसकि
तँऽ कौखन हरमुनियाँक तर मे दबि
उघार करैत रहैत अछि
हमरा... प्रिय !
अहाँक नजरि
निविड़ एकांत मे
लजा दैछ...
एम्हर विस्मय सदिखन
पछॊड़ धयने रहैछ हमर
ओत्तहु जतय अहाँ
नहियॊ रहैत छी सद्यः
हम किएक आँचर सरिया लैत छी
साकांक्ष भऽ... बेर बेर... कियै...!