हार्दिक अभिनंदन

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Thursday, August 29, 2013

भारत के निर्माण पर आपका नहीं हक!

भारत के निर्माण पर जब कांग्रेस ने हक जता दिया है तब कोई और देश के निर्माण की जिम्मेदारी अपनी न समझे! आजादी के अभी सात दशक ही तो पूरे होने वाले हैं। एक आदमी जो आजाद पैदा हुआ, वह तो अभी 70 साल का भी नहीं हुआ है। वह अकेला आदमी कितना बदलेगा कई सौ साल से लुटे-पिटे देश को! अभी हमें मीलों चलना है। हमें राह मत दिखाओ, पीछे-पीछे आओ! इसे मेरा हक मानो!
तुम देश का मध्यवर्ग हो– तुम पिटते रुपये, चढ़ती महंगाई, गर्दन पर नौकरी से छंटनी की रखी धारदार छुरी की चिंता करो, कहाँ इस पचड़े में पड़ते हो? यह पूछना तुम्हारा काम नहीं है कि करोड़ों गरीबों की खाद्य-सुरक्षा का स्वप्न बीती रात को ही हमें क्यों आया या हम ऐसा करने के लिए धन कहाँ से लाएंगे! तुम देश के किसान हो, उपजाओ। जो बिक जाये बेच लो, खा सको खा लो। बाकी हमारे पास सड़ने के लिए छोड़ दो।
पर सवाल इस तेवर मात्र का नहीं है। कांग्रेस खाद्य-सुरक्षा के मसले पर जैसा रुख अपना रही है उससे लगता है वह भाजपा सहित अन्य कई पार्टियों को कह रही है–’तुम विपक्षी हो, तुम हमारा समर्थन क्यों कर रहे हो? भारत के निर्माण पर तो हक है मेरा!’
बहरहाल यह पार्टियों की समस्या है। हम तो सिर्फ इतना जानना चाहते हैं कि मुफ्त अनाज के लिए धन कहाँ से आएगा? वह आ भी गया तो जिन्हें वह सामग्री मिलेगी वे अब भूखे नहीं सोयेंगे तो फिर अगली सुबह रोजगार के लिए कहाँ जायेंगे? यदि उन्हें रोजगार नहीं मिला तो वे क्या-क्या करेंगे? चलिए हम मान लें कि यह उनकी समस्या होगी तो हमें हमारी समस्याओं से निजात दिलाने का क्या उपाय करेंगे?
एक बार किसान प्याज ढंग से उपजा ले या वर्षा रानी की कृपा से उपज जाए तो उसका मूल्य इतना गिर जाता है, मांग-आपूर्ति का ग्राफ ऐसा बनता है की किसान जार-जार रोता है। अगले साल वह कम उपजाता है और बिचौलिए प्याज को ’80′ रुपए किलो बेच हम सबको रुलाते हैं। विडंबना यह कि किसान तब भी फायदे का हकदार नहीं बनता। अब जब सरकार गरीबों के लिए अनाज खरीदेगी तो किसान जाहिर तौर पर चावल और गेहूं उपजाने पर ही अधिक ध्यान देगा। अब हम दलहन की मांग भर आपूर्ति करने में असफल होंगे। सब्जियों का यही हाल होगा। आयत की राह जायेंगे तो कीमतें आसमान छुएंगी। पहुँच से बाहर! अब इसके लिए सरकार क्या करने जा रही है?
इतना ही नहीं। कई राज्यों में जहाँ ऐसी योजना अमल में है और केंद्र की योजना से अधिक अनाज सस्ते में दे रही है और जो पर्याप्त नहीं है वहीँ उससे भी कम अनाज देने की योजना कहीं एक साजिश तो नहीं? कैसे? आज भाजपा शासित जिन राज्यों में 35 किलो अनाज मिल रहा है उन्हें अब सब की तरह 25 किलो मिलेगा। चूँकि यह लाभ उन्हें राज्य सरकारें दे रही थी तो वे उन्हें वोट देते हैं या देने की सोच रहे हैं। अब उनकी नाराजगी भी राज्य सरकार ही झेलेगी। केंद्र की खाद्य-सुरक्षा योजना से जो नए लाभार्थी जुड़ेंगे वे इतने में ही खुद को 2014 चुनाव तक तो तृप्त पाएंगे ही! यानी उनका थोक वोट! अलोकप्रियता के गर्त में डूबती पार्टी को इससे अच्छा सहारा और क्या होगा। इस खाद्य-सुरक्षा की लाठी से सांप भी मर जयेगा और लाठी भी नहीं टूटेगी!
यदि इस योजना में कोई साजिश नहीं, और यह सोनिया जी की रातोरात उमड़ आई गहरी ममता का सच्चा प्रसाद है तो कोई बताएगा कि आज तक भूखों मरता गरीब मुक्त बाजार से बचे अनाज और नमक-मिर्च की महँगी खरीद करने में कैसे सक्षम होगा? क्या महंगाई पर रोकथाम के प्रति कोई ठोस योजना आपके पास है?

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