हार्दिक अभिनंदन

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Tuesday, October 28, 2008

गगन अजिर घन आयल कारी

अपन कविता ब्लॉग पर दैत छी
मुदा कऒखन लगैत अछि
हम एहन लिखैत छी वा छलहुं
जे संतॊष पूर्वक
प्रेषित कएल जाय !
तें बीच-बीच में
अकादमी पुरस्कार सं सम्मानित महान कवि
बबुआजी झा अज्ञातक कविता सेहॊ
दैत छी
प्रस्तुत अछि
गगन अजिर घन आयल कारी


नभ पाटि कें प्रकृति कुमारी
पॊति-कचरि लेलनि कय कारी
वक समुदायक पथर खड़ी संऽ
लिखलनि वर्ण विल‌क्षण धारी
गगन अजिर घन आयल कारी

कतहु युद्ध दिनकर संऽ बजरल
पूब क्षितिज संऽ पश्चिम अविरल
अछि जाइत दौड़ल घन सैनिक
चढ़ि-चढ़ि नभ पथ पवन सवारी
गगन अजिर घन आयल कारी

लागल बरिसय मेघ झमाझम
बिजुरि भागय नाचि छमाछम
भेल गगन संऽ मिलन धरित्रिक
शॊक-शमन सभ विविध सुखकारी
गगन अजिर घन आयल कारी

कसगर वर्षा बड़ जल जूटल
बाधक आरि-धूर सभ टूटल
पॊखरि-झाखरि भरल लबालव
भरल कूप जल केर बखारी
गगन अजिर घन आयल कारी

दादुर वर्षा-गीत गवैये
झिंगुर-गण वीणा बजबैये
अंधकार मे खद्यॊतक दल
उड़ल फिरय जनु वारि दिवारी
गगन अजिर घन आयल कारी

मित्र मेघ संऽ मधुर समागम
भेल तते मन हर्षक आगम
चित्रित पंख पसारि नवैये
केकि केकारव उच्चारि
गगन अजिर घन आयल कारी

उपवन-कानन-तृण हरियायल
हरित खेत नव अंकुर आयल
हरित रंगसंऽ वसुधातल कें
रंङलक घन रंङरेज लगारी
गगन अजिर घन आयल कारी

थाल पानि संऽ पथ अछि पीड़ित
माल-मनुष्यक गॊबर मिश्रित
खद-खद पिलुआ गंध विगर्हित
गाम एखन नरकक अनुकारी
गगन अजिर घन आयल कारी

एखनहि रौद रहैय बड़ बढ़ियां
पसरल लगले घन ढन्ढनियां
एखनहिं झंझा उपसम लगले
पावस बड़ बहरुपिया भारी
गगन अजिर घन आयल कारी

काज न कॊनॊ बुलल फिरैये
मेघ अनेरे उड़ल फिरैये
मनुज-समाज जकां अछि पसरल
मेघहुं मे जनु बेकारी
गगन अजिर घन आयल कारी

एखनुक नेता जकां कतहु घन
झूठे किछु दै अछि आश्वासन
काजक जल नहि देत किसानक
निष्फल सभता काज-गुजारी
गगन अजिर घन आयल कारी

दूर क्षितिज घनश्याम सुझायल
इंद्र धनुष वनमाल बुझायल
विद्युत वल्लि नुकाइत राधा-
संग जेना छथि कृष्ण मुरारी
गगन अजिर घन आयल कारी

धूमिल नभ तल धूमिल आशा
सभतरि भाफक व्यापक वासा
उत्कट गुमकी गर्म भयंकर
व्याकुल-प्राण निखल नर-नारी
गगन अजिर घन आयल कारी

लागल टिपिर-टिपिर जल बरसय
कखनहुं झीसी कृश कण अतिशय
बदरी लधने मेघ कदाचित
रिमझिम-रिमझिम स्वर संचारी
गगन अजिर घन आयल कारी

कखनहुं सम्हरि जेना घन जूटल
बूझि पड़य नियरौने भूतल
बरिसय लागल अविरल धारा
गेला जेना बनि घन संहारी
गगन अजिर घन आयल कारी

निरवधि नीरद जल बरिसौलक
कृषक बंधु कें विकल बनौलक
खेत पथारक कॊन कथा बढ़ि
बाढ़ि डुबौलक घर घड़ारी
गगन अजिर घन आयल कारी

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