धानक दूध भारी आ ठॊस ह्वैत रहलै
आ शीत संग हौले-हौले बहैत रहलै
समय आ व्याकुल मॊन
आ आँखिक सॊझाँ
रिक्त हॊइत रहलै खेत
आ भरैत रहलै खरिहान
गॊहूम सँऽ
आ पुनः जलमग्न हॊइत रहलै
अहाँक अत्यंत मनॊहरताक परिपार्श्व मे
ई आँखि
गेंदा, तीरा, सिंगरहार आ थलकमल
लुटाइत देखैत रहलै
खसैत रहलै कओखन अहाँक फूलडाली सँऽ तऽ
कओखन अहाँक आँचर सँऽ
हमर आँखि
छॊट-पैघ यात्रा करैत रहलै
अहाँक अत्यंत मद्धिम मनॊहरताक परिपार्श्व मे
अनुखन नव पाँखि लगा उड़ैत रहलै
ई आँखि
छाती मे नेने एकटा गाम, एकटा धार, एकटा माय
थान तर केर जाड़क भॊर
बदलल आकास मे
दृश्य बदलैत रहलै
मुदा अहाँक अत्यंत मद्धिम मनॊहरताक परिपार्श्व मे
लसैक कऽ ठमकल छै
छॊट-छॊट कालक एकटा
कॊंढफट्टू दृश्यालॊक....,
हम जी रहल छी...!?...
Sunday, August 2, 2009
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