नीक जॊकाँ पर्दा सँऽ घेरल
वातानुकूलित डिब्बा मे
यात्रा
दूरी मे नहि
समय मे कटैत छै
दू विपरीत दिशा मे
पड़ाइत विभिन्न संयॊग-वियॊगक
झलफलाइत स्मृतिकण सँऽ बनल
अमूर्त पटरी पर
खिड़की सँऽ बाहिरक बन्न दुनियाक केबाड़
फुजबाक कॊनॊ उपाय नहि देख
खुलि जाइत छैक
मॊनक गह्वर
पबैत छिएक
ओहि मे
रहैत छी
अहीं मात्र
रूप बदलि कऽ
नव-नव
मानॊ अन्हार कक्ष मे
जरैत एसगर दीप
केर बातीक लौ
लहराइत हॊ
अहांक आँचरक हवा सँऽ
आ अहाँक स्मृति मे
थरथराइत हॊ
पीपरक सहस्र पात
ओहि गह्वरक रक्तरंजित
देबाड़ पर
प्रेमक विस्मयकारी
स्तंभित अवकाश आ विछॊहक निर्मम
दुराग्रही क्रियाशीलता बनि कऽ
Thursday, June 18, 2009
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