बेर बेर...
बेर बेर हमर चेतना मे अहाँ आबि जाइत छी
गीतक टेक जॊकाँ
मॊन रहैत छी
जीवित हमरा ठॊर पर...
अहाँ प्रायः हरेक बेर, हरेक समय
देखैत रहैत छी हमरा
ढरकल आँचर
की करी... की करी जे...
कौखन तानपूराक खुट्टी मे
लसकि
तँऽ कौखन हरमुनियाँक तर मे दबि
उघार करैत रहैत अछि
हमरा... प्रिय !
अहाँक नजरि
निविड़ एकांत मे
लजा दैछ...
एम्हर विस्मय सदिखन
पछॊड़ धयने रहैछ हमर
ओत्तहु जतय अहाँ
नहियॊ रहैत छी सद्यः
हम किएक आँचर सरिया लैत छी
साकांक्ष भऽ... बेर बेर... कियै...!
हार्दिक अभिनंदन
अपनेक एहि सिंगरहार मे हार्दिक अभिनंदन अछि
Search This Blog
Sunday, August 2, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment