अहाँकेँ लगैत अछि
जखन
कि हम अंतः छी कत्तहु
तखन
हम रहैत छी
अहीँक आँचर तऽर
झलफलाइत दीप सन
जैरत आ आलॊकित हॊइत
स्नेहक आधिक्य आ
ढबकैत इच्छाक उछाह सँऽ
अहाँकेँ
बूझक चाही
जे लॊक सदिखन रहैत छै
ओत्तहि जतऽ
रहैत छैक लौलसा ओकर !
हार्दिक अभिनंदन
अपनेक एहि सिंगरहार मे हार्दिक अभिनंदन अछि
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Sunday, August 2, 2009
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