प्रिये !
हम मऽरऽ नहि चाहैत छी
सबहिक जॊकां
जीवऽ सेहॊ नहि
चाहैत छी हम
अहां बिनु
हम चाहैत छी
गाम में अपन दलान पर
हाथ मे ली गीता
आ आद्यांत खत्म करी
फेर उठाबी रामचरितमानस
महाभारत आ वाल्मीकि केर
गूंथल रामायण
खत्म करी
हम
खत्म करऽ चाहैत छी रामायणा आ महाभारत
लगातार
हम
खत्म करऽ चाहैत छी अपन जिनगी
हम जीवऽ नहि चाहैत छी
अहां बिनु
विवेकानंद झा
१८ नवंबर ९५
हार्दिक अभिनंदन
अपनेक एहि सिंगरहार मे हार्दिक अभिनंदन अछि
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Sunday, November 30, 2008
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