हार्दिक अभिनंदन

अपनेक एहि सिंगरहार मे हार्दिक अभिनंदन अछि

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Sunday, November 30, 2008

खत्म करऽ चाहैत छी जिनगी

प्रिये !
हम मऽरऽ नहि चाहैत छी
सबहिक जॊकां
जीवऽ सेहॊ नहि
चाहैत छी हम
अहां बिनु
हम चाहैत छी
गाम में अपन दलान पर
हाथ मे ली गीता
आ आद्यांत खत्म करी

फेर उठाबी रामचरितमानस
महाभारत आ वाल्मीकि केर
गूंथल रामायण
खत्म करी
हम
खत्म करऽ चाहैत छी रामायणा आ महाभारत
लगातार
हम
खत्म करऽ चाहैत छी अपन जिनगी

हम जीवऽ नहि चाहैत छी
अहां बिनु

विवेकानंद झा
१८ नवंबर ९५

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