हमरा दलानक सॊझां
साफ पानिक छॊट सन
पॊखरि मे
हेलैत छॊट-छॊट माछ
अहां
आब नहि देख सकब
आ नहि देख सकब
दूर तड्डिहा बान्ह धरि
लगातार पसरल खेत मे
लहलहाइत धान
आब ओ नहि रहल पुरनका गाम
खलिहान मे जे रमा
बिहुंसल छली
ओ पछिला दशकक
गप्प थिक
आब केओ
नहि दौड़ैत छै
खरिहान मे
केओ नहि हंसि पड़ैत छै
हमरा गाम मे
ओना
बिसंभर कका
भेट जयताह अबस्से
टुटलाहा चौकी पर
खॊंखी करैत
एक सॊह मे
भेट जायत अबस्से
बाहर जंग लागि कऽ
सड़ैत मिशीन सभ
दुर्लभ नहि छै
बरऽद बिहीन खूंटा आ लादि
चार खसल बरऽदक घर
मैल आ पुरान नूआ मे
हमर नवकी भौजी
असक्क काकी
आ खॊंताक छिरिआयल
समस्त खढ़
एम्हर विगत किछु बरख संऽ
केकर शापक छाह मे
हुकहुक कऽ रहल अछि
अप्पन गाम
आकि मरि गेल अछि अप्पन गाम
नहि बूझल
नहि बूझल इहॊ जे
बुढ़बा-बुढ़िया कएं भॊजन रान्हि कऽ
खुआवैत जवान नवकनियां
सुहासिनी
कखन धरि
बाट जॊहैत रहतीह
अप्पन-अप्पन मदनक
कखन धरि ?...!
२५ नवंबर ९४
हार्दिक अभिनंदन
अपनेक एहि सिंगरहार मे हार्दिक अभिनंदन अछि
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Sunday, November 30, 2008
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1 comment:
आब केओ
नहि दौड़ैत छै
खरिहान मे
केओ नहि हंसि पड़ैत छै
हमरा गाम मे
bad nik mon me utray bala
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