हार्दिक अभिनंदन

अपनेक एहि सिंगरहार मे हार्दिक अभिनंदन अछि

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Sunday, November 2, 2008

प्रिये !

प्रिये !
काल्हि हमर एकटा आर पूजा व्यर्थ भेल
अंतिम पुरइन हाथ संऽ
ससरि गेल
खसि पड़ल
वेगवती धार मे डूमल

हमर मॊन
अनचॊकहिं कानि उठल
व्यर्थहिं
अहांकें देखल
किछु बुन्न नॊर ढबकल

आ एकटा आर पूजा व्यर्थ भेल
अंतिम आश्वासन
आंखिक सॊझां बिलटि गेल
भेल प्रकंपित
हिल गेल
उदास मॊन डूमल

पुनः हमर प्रशस्ति
हमर याचना
खंडित भेल
हमर संपूर्ण अर्चना
एक सङ
काल-कवलित
हमरा समक्ष
हमर मनॊहर स्वप्न
भाङल

बेकल मॊन
पुनः कानि उठल
अवश स्तंभित नेत्र
पथरायल
नहि निकसल एक बुन्न नॊर
जड़ित वदन पर
झिलमिला गेल
एकटा पनिसॊह हंसी
अहां देखल

प्रिये !
काल्हि हमर प्रश्नक जे उत्तर अहां देल
ऒ हमर दरकार
नहि छल
अछि खूब अहांकें बूझल
हमरा अहांक कॊन
उत्तर चाही जे जी सकी हम
मुदा तखनहुं
एकटा आस तऽ बांचल
अछि कखनहुं
कि जायत अहांक मॊन बदलि
कि अहांकें हमही चाही

प्रिये !
ऐना कत्तहु हॊइत छै
जेना
प्रेम मे विकल्प...
दुनिया अपन चालि
खराप कऽ लिए
तें कि प्रेम
मुदा ई की भऽ गेल अछि
अनचॊकहिं
जे प्रेम मे
पूजा प्रारंभ कऽ देने
अछि मॊन हमर
अहांक चरण मंगैत अछि
आब अहां देवी
भऽ गेल छी
हमर

प्रिये !
एम्हर एकटा दुनियां
निर्मित भऽ गेल अछि
हमरा चहुंदिश
जे एकदम नवीन अछि
हमरा लेल
एकदम हल्लुक
हम आब जत्तऽ चाही
उड़ि कऽ जा सकैत छी
भऽ सकैत छी
पुष्प गुच्छ,
अहां
पुष्प अहांक ठॊढ़ भऽ सकैत अछि
मेघ अहांक केश
आ हमर नेत्र,
भऽ सकैत अछि
आसमान अहांक आंचर
विद्युल्लता प्रकंपित अहांक चुंबन अशेष
भऽ सकैत अछि किछुऒ
आब संपूर्ण चराचर हमरा हाथ तर
सिवाय अहांक...

विवेकानंद झा
१० अप्रैल १९९६

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