हार्दिक अभिनंदन

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Thursday, August 29, 2013

भूख भुनाती सरकार

देश की माली हालत पर संसद के अन्दर-बाहर हो रही चर्चाओं में हर कोई इस दुर्दशा का जिम्मेवार सरकार को ठहराता नजर आता है, नजरिया चाहे जो भी रहा हो। भाजपा के वरिष्ट नेता यसवंत सिन्हा समझ नहीं पा रहे कि आखिर सरकार की अकर्मण्यता का कारण क्या है? पिछले कई सालों से सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी क्यों है? देश को गहरे संकट में धकेलने के पीछे आखिर उसकी मंशा क्या है? अदि-अदि। तो बीजू जनता दल के युवा नेता जय पांडा कमोबेश ऐसा ही आश्चर्य व्यक्त करते हुए संसद में यह कहते हुए अफसोस जाहिर करते हैं कि सरकार चाहती तो कलम की नोंक से एक फैसला लिखकर स्थितियों में व्यापक बदलाव कर सकती थी पर न जाने क्यों उसने ऐसा नहीं किया! वहीं जो आर्थिक मामलों की जानकारी में आम आदमी की तरह ही तंगअक्ल हैं वे देश की दुर्दशा के लिए बुनियादी मामलों में सरकार की नाकामियों को गुनाहगार ठहराते हैं। मसलन, शरद यादव को लगता है कि किसानों को महज पानी उपलब्ध कराने पर ही सरकार ध्यान देती और उसमें सफल हो जाती तो देश के किसान हमारा और अपना पेट मजे से भरने में कामयाब हो जाते। किसानों को पानी देकर देश के चेहरे पर पानी लाया जा सकता था या है। पर अफसोस कि पिछले 66 वर्षों में वह ऐसा करने में कामयाब नहीं रही।कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि सब ऐसा जाहिर करते नजर आ रहे हैं, मानो उन्हें पता ही नहीं कि प्रधानमन्त्री और वित्त मंत्री और अंततः कांग्रेस हाथ पर हाथ धरे बैठी क्यों है, या वह ऐसी नादानी कैसे कर सकती है?
कांग्रेस को नादान मानने की इस भूल या चतुराई के ही माने निकालने की जरूरत है। यह कार्य कठिन नहीं तो आसान भी नहीं।
आइये हम विपक्षियों, सहयोगियों, समीक्षकों आदि द्वारा कांग्रेस को नादान मानने के कुछ और तथ्यों का जिक्र करें। सामान्य रूप से तो यही कि राजकोषीय घाटे और डॉलर से पिटते रुपए और अंततोगत्वा सुरसे-सी मुंह फैलाती महंगाई के इस दौर में कांग्रेस आखिर क्या करेगी? खाद्य-सुरक्षा के लिए धन कहाँ से जुटाएगी? इस कोशिश में करदाताओं के ऊपर प्रतिवर्ष 1,25,000 लाख करोड़ का बोझ आएगा। और यह खर्च बढ़ता ही जाएगा। भारतीय उद्योग परिसंघ के अध्यक्ष कृष गोपालकृष्णन इसे गहरी चिंता का विषय बताते हैं–इतना बड़ा खर्च, इस समय, राजकोषीय घाटे पर निश्चित ही भयानक दुष्परिणाम पैदा करेगा।
तो क्या हम यह मानकर चलें कि देश को अनुदान (सब्सिडी) देने की नीति से अलग लीक पर डालने और मुक्त बाजार व उदारीकरण का रास्ता दिखलाने वाले मनमोहन जी को इन तथ्यों का पता नहीं?
मैं ऐसी नादानी नहीं करना चाहता। गरीबी हटाओ का नारा बुलंद करनेवाली इस पार्टी की ‘गरीबी के फायदे’ की समझ पर संदेह करना ईशनिंदा जैसा है। जब इंदिरा जी ने यह नारा बुलंद किया होगा तब उनसे ज्यादा आश्वस्त शायद ही कोई और हो कि यह कभी संभव नहीं, लेकिन उन्होंने गरीबों की उपस्थिति की ताकत समझी। उन्हें बहलाया। अब तो इनकी ताकत और बढ़ी है। इनकी संख्या बढ़ी है, इन तक पहुंचना आसन हुआ है, चुनाव सुधारों के कारण ये वोट डालने के लिए बड़ी संख्या में बूथ तक पहुँच रहे हैं। तो ये जिसे चाहें उसे सत्तानासीन कर दें। इन्हें राम-रहीम नहीं,  रोटी चाहिए। यहाँ मुझे सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता ‘पोस्टमार्टम की रिपोर्ट’ याद आती है–
गोली खाकरएक के मुँह से निकला -’राम’।
दूसरे के मुँह से निकला-’माओ’।
लेकिन तीसरे के मुंह से निकला-’आलू’।
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट है कि पहले दो के पेट भरे हुए थे।
लेकिन गरीब के मुंह से आलू शब्द फूट पड़े इसके लिए जरूरी है कि उनके लिए आलू सुलभ न रह जाए। मनरेगा ने चाहे-अनचाहे इन्हें थोड़ी शक्ति तो खरीद की दे ही दी है! तमाम धांधलियों के बावजूद। और इस स्कीम के लिए कांग्रेस को एक बार सत्ता इन गरीबों ने दे दी है, अब पुरानी स्कीम के लिए ये बूथ तक नहीं आने वाले। तो कांग्रेस यह जानती है, आपको पता हो न हो! उन्हें पता है कि कम में जीने की कला विकसित कर चुके गरीबों का जीना मुहाल करने के लिए महंगाई से अधिक कारगर हथियार और कुछ हो नहीं सकता। महंगाई डायन चीजों को इनकी पहुँच से इतना दूर कर देती है कि वे उन्हें चाँद सरीखा दिखने लगता है। फिर ऐसी ही स्थितियों में इन्हें 1 रुपए किलो बाजरा दे दो तो ये गरीब आपको अपनी गुलामी लिख दें, एक वोट क्या चीज है!
अब आप समझ रहे होंगे कि मरनासन्न रुपए और कमरतोड़ महंगाई कांग्रेस के लिए क्यों जरूरी हैं। क्यों यह इन स्थितियों को मूक दर्शक बनकर मुंह फैलता हुआ देखती नजर आती है। यसवंत जी कांग्रेस कोई नादानी नहीं कर रही। उसे अच्छी तरह पता है कि वह क्या कर रही है। आप नादान न बनिए। आप विपक्ष के नेता हैं, ऐसी साजिशों का पर्दाफास कीजिए। आपकी चुनौती(बहकाबे) पर कांग्रेस चुनाव नहीं करवाने वाली। सत्ता का पूरा स्वाद भोगकर ही यह सरकार चुनाव में उतरेगी। आप जैसे नेता और उनकी पार्टियाँ जाने-अनजाने इस साजिश में शरीक होकर अपनी बाजी शुरू होने से पहले ही हार चुके हैं। जाहिर है, आपको भी हमारी या कहें कि देश की चिंता नहीं है। तो ऐसे में विश्वसनीय मतदाताओं के लिए खाद्य-सुरक्षा और अपने लिए भ्रष्टाचार-सुरक्षा की कोशिशों का बुरा मानने की जरूरत नहीं, इनसे सीख लेने की जरूरत है। इसलिए मुरलीमनोहर जी! मुलायम जी! और अन्य तमाम जी! राजनीति के गुर सीखने में गुरेज मत करिए। कांग्रेस इसके लिए सबसे अच्छी कोचिंग दे सकता है।

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