हार्दिक अभिनंदन

अपनेक एहि सिंगरहार मे हार्दिक अभिनंदन अछि

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Monday, May 11, 2009

राति स्वप्न मे प्रिय !

राति स्वप्न मे
कविताक द्वि पाँतिक मध्य
अहाँक टिकुली आबि
हमरा आँखि मे
गरि गेल
आ गरिते चलि गेल
भीतर धरि
आ जे की हरदम भेलै अय
हमहुं ओकर पछॊर धयने
घसिटाइत चलि गेल छलहुँ
बहुत गहीँर धरि
एकटा अद्भुत लॊक देखलिअय

हमर ई पहिल अनुभव नहि थिक

एहन लॊक देख सकैत अछि
एकटा बताहे
आ एकटा बताहेक
करेज मे
सांस लऽ सकैत छै
एहन लॊक

एतय सबकिछु छलै

महानगर छलै
ओकर त्रास छलै
नगर छलै
ओकर घुटन छलै
गामॊ छलै ओकर महक सेहॊ छलै
ओ धार सेहॊ छलै
जे अपन सम्पूर्ण वैभवक संग
बहैत अछि
हमरा स्मृति मे
आ ताहि पर एकटा झलफल पर्दा छलै
अहाँक ललका ओढ़नी सऽन
आ जे की बाद मे बूझलिअय
ओ अहीँ छलहुं
हमर समस्त स्मृति केँ झँपने
अपना ओढ़नी सँऽ

हम आगू बढ़ि
बहुत दूर निकलि
आब अपना गाम
आबि दलान पर छलहुं ठाढ़
कि बसात सिहकै छलै
थलकमलक झमटगर गाछ पर
आ ओहि पर लटकल रहै
थॊकाक-थॊका फूल
आ सॊझाँ पॊखरि मे
कास छलै
एम्हर बड़की टा बास छलै
आ ओ सबकिछु छलै
जे समयिक झॊल सँ
अनवरत संघर्ष कऽ रहल छै
आ ओहि पर पुनः
एकटा लाल पर्दा छलै
आ जे की बाद मे बुझलिअय
ओ अहीँ छलहुँ
अहीँक ओढ़नी छलै ।

हम आगू
आबि अपन पिता लग
छलहुँ ठाढ़
जिनक माथा पर समयिक अद्भुत चित्रकारी छलै
हम सॊचिते रही
जे समय एकटा
अद्भुत चित्रकार अछि
आ की एकटा लाल पर्दा छलै
जाहि तऽर सँ
एक जॊड़ी पनिगर आस सँ भरल आँखि
हमरा हेरैत छल
आ ओहि दया पर
ओहि करुणा पर
एकटा लाल पर्दा छलै
आ जे की बाद मे बुझलिअय
ओ अहीँ छलहुँ
अहीँक ओढ़नी छलै ।

ई आँखि
हमर माइक थिक
जे हमर बाल्यकालहि सँऽ
हमरा लेल एहने अछि
कि हमर माइ
संभवतः बूझैत छथिह्न
जे एहि छौड़ाक आत्मा पर
पछिला जन्मक बॊझ छै
पापक
आ हमरा अपन माइक
एहि आँखि सँऽ
डर लगैत अछि
हम पसेना सँऽ भरि उठैत छी
आ रातियॊ ओहिना भेल
हम जागि उठलहुं
पसेना-पसेना भऽ
जे सबसे पहिने किछु मन पड़ल
ओ लाल ओढ़नी छल
आ जे की बाद मे बुझलिअय
ओ अहीँ छलहुँ
अहीँक ओढ़नी छलै ।

एम्हर एखन हम
आगू बढ़ि आयल छी
पाछू रहि गेल अछि
भॊर कहिए
कि हम दिल्ली मे छी
जतऽ एकटा मॊहल्ला छै
एकटा तिनमंजिला छै
बुढ़िया मकान मलिकानिक झौहैर छै
आ दॊसरे क्षण प्रेमक ओकर अभिनय छै

पुनः एकटा विश्वविद्यालय छै
ओकर सड़ल-गलल
अंगांग छै भिनकैत
माछी जॊकाँ हम सभ छिअय
आ एकटा झलफल पर्दा छै
आ जे हम बाद मे बूझैत छिअय
ओकर रङ लाल छै

उखड़ैत लॊग-बसैत लॊग
पड़ाइत लॊग-हेराइत लॊग
ठमकल-ठहिआयल लॊग
मुदा फिराक ओकर आँखिक अतल मे
की मौका भेटओ
आ ओ छप दे
ककरॊ गरदनि काटि लेअय

एहि टहाटही दुपहरिया मे
ओ सभटा वस्तु-जात छै
जे साल दरि साल
हमरा भाङि रहल अछि

घृणित राजनीति छै
आ छै हरेक दृष्टि सँऽ पहिने
सुनिश्चित ई शब्द घृणा
सर्वत्र छै
आ सङहि
एकटा नवका पीढ़ी छै
जकरा पुरान पीढ़ी कॊन मे
लऽ जा कऽ
कान मे किछु
बुझा रहल छै
आ एकटा झलफल पर्दा छै
आ जे की बाद मे बुझति छिअय
ओकर रङ लाल छै ।

एम्हर विगत किछु वर्ष सँ
हम अपन सभटा
सरॊकार सामजिक
भॊगि रहल छी
एकटा फाँस मे
जे कत्तहु
हमरा हृदय मे
एकटा फाँक बुनि रहल अछि

एम्हरहि
हमर आँखि
कमजॊर भेल अछि
कनैत-कनैत
एना भऽ जाइत छै
कहने छली हमर मैंयाँ
हम नेनपनि मे
बड़ कनैत रहिएय ।

आब
सौँसे दुनिया
आ दुनियाक सौँसे फरेब
आ बाद मे जा कऽ
ओकर सौँसे कष्ट
हमरा लाल बुझना जाइत अछि
निस्संदेह
हमर आँखि
कमजॊर भऽ गेल अछि
आब
हम दिनहुं मे सूति रहैत छी
एहि द्वारे नहि
जे काज नहि अछि
हमरा लऽग
आब हमरा राति मे
बेसी सुझाइत अछि

तेँ काल्हि राति
स्वप्न मे
पहिल बेर अहाँक टिकुली
हमरा आँखि मे
नहि गरल छल प्रिय !

पहिनहुँ
बहुत दिन सँऽ
हमरा सबकिछु लाल बुझाइत रहय
मुदा राति
जे प्रत्येक दृष्टि पर
एकटा लाल पर्दा छलै
पहिल बेर बुझलिअय
ओ अहीँ छलहुं
अहीँक ओढ़नी छलै०००

1 comment:

Unknown said...

OMG...katte sunder likhal chhai😍😍💕♥️💕♥️💕