काल्हि सांझ
जखन इजॊरियाक गर्भ मे
छटपटाइत रहै
अन्हरिया
आगू बढ़ि हम
खॊंसि देने छलहुं
अहांक जूड़ा मे
एकटा शब्द
ऒकरा संऽ अहांक गप्प भेल ?
पुनः आइ
जखन हमरा आंखिक अन्हरिया मे
वैह इजॊरिया चुपचाप
एकदम चुपचाप
किलॊल कऽ रहल छल
हम अहां संऽ पूछि उठलहुं
अपराजिताक गाछ मे लटकल
हमर ओहि शब्दक हाल
जकरा अहां ऒत्तहि छॊड़ि आयल छी
आ जे पछिला जाड़क गप्प थिक
अहां कें मॊन अछि ?
ऒ अन्हार
जखन हाथ हाथ संऽ अदेख
अजान छल
हमर प्राण
अपन केहन तऽ आंखि संऽ
एक दॊसरा कें तकैत-तकैत
कॊसीक दू छॊर भऽ गेल
प्रिये !
अन्यथा जंऽ नहि ली
तऽ पूछि एकटा गप्प ?
ऒहि शब्द संऽ अहांक
किछु जवाब-तलब भेल
ऒ ऒ जे अछैत जाड़
आ जाड़क कुहेस
पड़ायल छल
घूर लग सं अकस्मात
एकटा कठिन भॊर मे
जा कऽ ठाढ़ भऽ गेल छल
थान तर अहांक लऽग
जतऽ उज्जर नूआ मे
अहां
नहुए-नहुए फूलडाली भरैत छलहुं...?
तखन तऽ ऒहॊ शब्द
ऒहिना टप-टप खसैत
रहि गेल हेतै
पारिजात पुष्पक संङ
निस्संदेह
लाज संऽ गरि गेल हेतै
ऒहि निपलाहा धरती मे
आब ऒ पूजा यॊग्य नहि रहल
जे ऒकरा अहां नहि टॊकलिएय, प्रिये !
आ ऒकर की भेलै प्रिये !
ऒ ऒ जे बरख भरि संऽ
अहांक गेरुआ तऽर
दहॊ-बहॊ कानि रहल रहल अछि
अहां संऽ अतेक निकट रहितॊ
ऒकर भाग्य किएक नहि बदललै
किएक प्रिये !
एना किएक हॊइत छैक
हमरा शब्दहुं सङ
जेना हमरा सङ भेलै ...!
विवेकानंद झा
११ अप्रैल ९६
हार्दिक अभिनंदन
अपनेक एहि सिंगरहार मे हार्दिक अभिनंदन अछि
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Friday, October 24, 2008
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