हार्दिक अभिनंदन

अपनेक एहि सिंगरहार मे हार्दिक अभिनंदन अछि

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Tuesday, May 26, 2009

कहियॊ गलती सँऽ

कहियॊ गलती सँऽ
सौभाग्य की दुर्भाग्य सँऽ
देख लैत छी साँझ
शहर मे
तऽ नहि रहल हॊइत अछि
शहर मे

मऽन पड़ैत अछि
गामक मुनहारि साँझ
आ भगवती घर से
बहराइत काकी
आँचरक ओट में लेने दीप
आ नहुँए-नहुँए आङनक दॊसर कॊन धरि
जाइत तुलसी चौरा लग
ठॊढ़ पटपटबैत
आ जे की बाद मे बुझलिअय
करैत छल हमरे सबहिक उन्नतिक कामना

तहिना कहियॊ गलती सँऽ
सौभाग्य की दुर्भाग्य सँऽ
देख लैत छी भॊर
शहर मे
तऽ नहि रहल हॊइत अछि
शहर मे

मऽन पड़ैत अछि्
गामक साकांक्ष भॊर
चापाकऽल पर घऽरक समस्त
बरतन-बासन मांजैत माइ
कऽल चलबैत काकी
अंङना नीपैत बड़की बहीन
तत्परता सँऽ
चूल्हा पजारैत छॊटकी
आ जे की बाद मे बुझलिअय
करैत छल हमरे जलखइक तैयारी
ओकरा सबकेँ नहि छलैक अपन कॊनॊ फिकिर
आ एम्हर
जखन हम शहर मे रहैत छी
देवलॊक सँऽ हमर माइ आ काकी
तऽ कॊनॊ-कॊनॊ गामक संघर्षलॊक सँऽ
हमर बहीन सब
सतत करैत रहैत अछि हमर कुशलक कामना
बूझल अछि हमरा

फेर कहियॊ गलती सँऽ
सौभाग्य की दुर्भाग्य सँऽ
देख लैत छी दुपहरिया
शहर मे
तऽ नहि रहल हॊइत अछि
शहर मे

मऽन पड़ैत अछि्
गामक प्रचंड रौद आ अटट्ट दुपहरिया
ओहि काल कतहु सँऽ
हहायल-फुहायल घुरैत बाबाक
मुँह सँऽ झहरैत चन्दा झा केर
पाँति - अरे बाबा दावानल सदृश लंका जड़ैये
आ हम बहीन आ माइक आँखि बचा के
निकलि जाइत रही लंका मिझबऽ लेल
आ उमकी धार मे ताधरि
जाधरि आँखि
लाल नहि भऽ जाइत छल
अरहुल फूल सन
तखन
मन पड़ैत छल माइ
जे करैत हॊयत चिन्ता
जॊहैत हॊयत गाम पर बाट
आ जखन
हम जायब अंङना
तऽ ओ तमसा कऽ खसि पड़त पैर पर हमर
आ जे की बाद मे बुझलिअय
ओकर एहन उनटल प्रतिक्रिया
हमर जीवैत रहबाक कामना छल

आ राति तऽ
सब दिन देखते छी शहर मे
वस्तुतः शहरक मतलब
रातिए हॊइत अछि
शायद
एहन राति
जाहि मे
तरेगन नहि हॊइत छैक
स्याह आकाश सेहॊ नहि

कहियॊ शहरक रातिक आकाश
भरि पॊख देखू त‍ऽ सही
बुझायत शहर माने
की हॊइत छैक

तखन मऽन पड़त
अहूँ केँ अपन गाम
फूल-पात, खेत-खरिहान,
मऽन पड़त अपन बाध-बऽन
आ ओहि मे
तीन तनुक बाती पर टांङल
खढ़क खॊपड़ि
ओकर मुँह पर भुकभुक जड़ैत-मिझाइत डिबिया
आ ओकर महत्व

1 comment:

Unknown said...

Hamro mon hoi ya je humhu oi khet khalihaan me rahaitau...Shahar ke batti karaya pareshaan. mon hoiya dibiya me rahaitau lekin ahaank sange rahitau.